नौकरशाहों को समाज से जुड़े रहने की एक बड़ी सीख दे गए एडीजीपी पूरन कुमार: दर्शन कांगड़ा

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समाज एक बड़ी ताकत, जुड़ कर रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे

संगरूर 16 अक्टूबर (जोगिंदर) श्री दर्शन सिंह कांगड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय अम्बेडकर मिशन भारत ने कहा के जब अनुसूचित जाति से कोई साथी बड़ा अधिकारी बनता है तो अनुसूचित वर्ग में बेहद खुशी का माहौल होता है। और साथ ही उस समुदाय में अपने लिये एक सुरक्षा की सुखद भावना का संचार भी होता है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित वर्ग में खुद के भविष्य को सुरक्षित होने की एक आस पैदा होती है। उनको लगता है अगर भविष्य में उन्हें कोई दिक्कत आती है तो हमारा फलाँ भाई/बहन अधिकारी के रूप में बैठा है जो हमारी मदद करेगा। और उनकी इस उम्मीद में उनका आश्वस्त होना लाजमी है। श्री दर्शन कांगड़ा ने कहा कि अक्सर देखने में आता है कि कुछ अनुसूचित जाती के अधिकारी उच्च पदों पर पदासीन होने के बाद अपनी कौम व समाज से खुद को अलग कर लेते हैं। फिर उस अनुसूचित जाति के अधिकारी को अपनी कौम, समाज व सामाजिक कार्यकर्ता बहुत तुच्छ व हीन लगने लगते हैं। वह अपने पद की चकाचौंध और खुमारी में भूल जाते हैं उनका अपनी कौम व समाज के प्रति भी कोई जिम्मेदारी या दायित्व बनता है। उन्होंने कहा कि वह अपनी नौकरशाही का तमाम जीवन समाज को गरियाने में बिताता है। वह भूल जाता है कि रियारमेंट होने के बाद आना वापिस समाज में ही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि कुछ तो अपनी जाति छुपाकर ही सबसे अलग-थलग रहने लगते हैं। वो भूल जाते हैं वँशदानी बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी के कथन को जो कहते हैं कि”इस देश में आप धर्म बदल सकते हो जाती नहीं।जाति हमेशा तुम्हारे साथ चलती है। दर्शन कांगड़ा में आगे कहा कि आपका जहाँ भी विभागीय तबादला होगा आपके वहाँ पहुँचने से पहले आपकी जाति वहाँ पहुँच जायेगी। एक समय बाद उस दलित अधिकारी का समाज प्रति रूखे व्यवहार को देखकर समाज व सामाजिक लोग भी उससे दूरी बना लेते हैं। और धीरे-धीरे कुछ समय के बाद वह व्यक्ति एक अकेला रह जाता है। उन्होंने कहा कि फिर होता है खेल शुरू। जिस भी विभाग में वह व्यक्ति अधिकारी बना बैठा है उस विभाग के उच्च और निचले अधिकारी उस अनुसूचित जाति के अधिकारी की सारी कुंडली खँगाल लेते हैं और जान लेते हैं कि यह अनुसूचित जाति का अधिकारी अपने समुदाय से अलग-थलग है। इसका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है।आसान भाषा में कहें तो इस अनुसूचित जाति के अधिकारी के आगे-पीछे कोई नहीं है, इसका शिकार करना आसान है। और फिर उसी विभाग के जातिवादी मानसिकता रखने वाले उच्च व निचले अधिकारी मिलकर उस अनुसूचित जाति के अधिकारी को निगलने के लिए उसको घेरना शुरू देते हैं। क्योंकि खुद ऊँची जाति का होकर एक निचली जाति के अधिकारी को साहब कहना उसको सैल्यूट मारना उनको कतई बर्दाश्त नहीं होता। और अंत में उस अनुसूचित जाति के अधिकारी की एक साजिश के तहत या तो नौकरी खराब कर दी जाती है या उसको इतना मानसिक उत्पीड़न दिया जाता है कि वह भारी तनाव में आकर Y. पूरन कुमार की तरह खुद अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। श्री दर्शन कांगड़ा ने कहा कि इस प्रकरण से मेरी Y. पूरन कुमार जी व उनके परिवार से गहरी संवेदना है। जो हुआ बहुत बुरा हुआ है। लेकिन सच कहूँ तो इस घटना से पहले मैंने कभी भी, कहीं भी Y. पूरन कुमार जी और उनकी IAS पत्नी को अनुसूचित वर्ग के किसी भी सुख-दुख में शामिल होते नहीं देखा और न ही सुना। लेकिन आज समाज और सामाजिक कार्यकर्ता ही ADGP Y. पूरन कुमार को न्याय दिलाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं। ये होता है समाज का बड़प्पन और यह होती है समाज की ताकत जो बड़े से बड़े आतताइयों के सामने आपको झुकने नहीं देगा। उन्होंने कहा कि जो भी अनुसूचित जाति के अधिकारी समझते हैं कि आज हम जिस पोजिशन पर हैं अपनी काबिलियत के दम पर हैं इसमें समाज की कोई भूमिका नहीं है तो वो अपने इस ख्वाब-ए-ग़फ़लत से बाहर आएं। उनके लिये ये आईना है कि जब भी आप अपने विभाग में जातिगत शोषण का शिकार बनोगे तो समाज ही आपके काम आता है। अगर आपके विभाग के उच्च और निचले अधिकारियों को मालूम हो कि इस अनुसूचित जाति के अधिकारी के पीछे हजारों-लाखों की संख्या में जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने के लिए संघर्षशील समाज व सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं होगी कि आपसे जरा भी कोई ओछी हरकत कर जाए। इसलिए नौकरी पर रहते अपने आपको बहुत बड़ा टायकून न समझें। ये पद-प्रतिष्ठा कुछ समय के लिए होती है। समाज से जुड़कर रहें और अपने निस्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ताओं से मधुर संबंध बनाकर रखें। दर्शन कांगड़ा ने कहा कि यह सामाजिक भाईचारा ही आपके काम आना है यह सच्चाई है।